• Sponsored Links

करुणावान स्वामी विवेकानंद

Share this :

करुणावान स्वामी विवेकानंद


करुणावान स्वामी विवेकानंद

 ॐ

 करुणावान स्वामी विवेकानंद

मित्रो ! इस वीडियो में मैं स्वामी विवेकानंद जी के करुणावान और संवेदनशील  रूप का वर्णन करने जा रहा हूँ । उनका यह रूप किसी परंपरागत संन्यासी से अलग था।  प्राय: संन्यासियों के बारे में माना जाता है कि वे सुख-दुख और राग-विराग से ऊपर  होते हैं। वे भावनाओं में नहीं बहते । किंतु स्वामी विवेकानंद संन्यासी होते हुए भी अत्यंत करुणावान और कोमलहृदय थे। उनकी आँखें किसी के भी दुख को देखकर छलक पड़ती थीं । वे किसी के जरा से भी दुख को देखकर पिघल जाते थे । एक ऐसे ही रागरहित संन्यासी ने उन्हें कहा -- संन्यासी को तो किसी से भी लगाव नहीं रखना चाहिए । न किसी देश से न किसी प्रांत से । विवेकानंद ने उसे कहा --'जो व्यक्ति अपनी माँ को सेवा और प्रेम नहीं दे सकता ,वह औरों की माता को कैसे प्रेम और सेवा देगा ?" इस उत्तर से विवेकानंद के संवेदनशील व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।

 

 

करुणावान स्वामी विवेकानंद

करुणावान स्वामी विवेकानंद

 

 

 

उनकी संवेदनशीलता का एक प्रसंग याद आता है।  13 अप्रैल 1890 की बात है । वे वाराणसी में थे। उन्हें समाचार मिला है कि उनके गुरु भाई बलराम बोस का देहांत हो गया है। यह सुनते ही विवेकानंद भावविह्वल हो उठे । उनकी आँखों में आँसुओं की झड़ी लग गई।  उनके पास ही वाराणसी के प्रसिद्ध विद्वान प्रमदादास बैठे थे । उन्होंने स्वामी जी को चेताते हुए कहा -- " स्वामी जी ! आप एक संन्यासी हैं। संन्यासी को ऐसे आँसू बहाना शोभा नहीं देता ।" विवेकानंद को यह सुनकर झटका लगा । बोले --" क्या एक संन्यासी के लिए हृदयहीन होना आवश्यक है ? एक सच्चा संन्यासी संसारी लोगों से अधिक कोमल दिल वाला होता है प्रमदा बाबू ।"

 

करुणावान स्वामी विवेकानंद

करुणावान स्वामी विवेकानंद

हैरानी की बात तो यह है कि जो विवेकानंद अपनी जवानी में अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के अत्यंत भावुक होने पर झुँझलाया करते थे ; उनकी अत्यधिक भावुकता को न समझ में आने वाली कमजोरी मानते थे, जब वे स्वयं देश की पीड़ाओं में से गुजरे तो उनकी आँखें हमेशा डबडबाई रहती थीं । कभी-कभी तो वे एकांत में ही फूट-फूट कर रोने लगते थे ।

एक रात की बात है ।स्वामी विवेकानंद बेलूर मठ में थे । स्वामी विज्ञानानंद विवेकानंद के पास वाले कमरे में ठहरे हुए थे। आधी रात का समय था । सभी सो चुके थे।  इस बीच विज्ञानानंद को स्वामी जी के कमरे से सुबकने की आवाज सुनाई दी । इस कारण उनकी नींद खुल गई । कारण जानने के लिए वे स्वामी जी के कमरे की ओर दौड़े । स्वामी विवेकानंद रो रहे थे।उन्हें यह भी आभास नहीं हुआ कि कोई कमरे में उपस्थित है । विज्ञानानंद ने स्वामी जी से पूछा  -- "स्वामी जी ,क्या आप की तबीयत खराब है ?" स्वामी जी बोले --" नहीं पेशन !मुझे लगा, तुम सो चुके हो । कोई ऐसी बात नहीं है । मैं बीमार नहीं हूँ । मुझे अपने देशवासियों की पीड़ा देख कर रोना आ रहा है । मैं अपने गुरु रामकृष्ण के सामने रो-रो कर कह रहा था कि किसी तरह देश के हालात सुधार दें ।"

करुणावान स्वामी विवेकानंद

करुणावान स्वामी विवेकानंद

 

ऐसी ही एक और घटना स्वामी तुरीयानन्द जी सुनाते हैं । उन दिनों विवेकानंद अमेरिका यात्रा से लौट आए थे और कोलकाता में बलराम बोस के घर निवास कर रहे थे । एक दिन स्वामी तुरीयानन्द उनसे मिलने आए । स्वामी विवेकानंद बरामदे में टहल रहे थे और न जाने किन भावों में खोए हुए थे । स्वामी जी को पता ही नहीं चला कि कोई उनसे मिलने आया हुआ है । उन्होंने तुरीयानन्द की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा । तुरीयानन्द स्वामी जी को किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुँचाना चाहते थे ।  इसलिए प्रतीक्षा करने लगे कि कब स्वामी जी उनकी ओर निहारें । थोड़ी देर में उन्होंने क्या देखा -- अचानक स्वामी जी के मुख से मीराबाई के एक भजन की मार्मिक पंक्ति निकल आई --"मेरो दर्द न जाने कोय ।" वे भाव में डूब कर इस पंक्ति को बार-बार दोहराने लगे और आँसू उनकी आँखों से निकल कर गालों को भिगोने लगे । अचानक उन्होंने अपना चेहरा हाथों से ढँक लिया और आँसू धारासार उमड़ने लगे । पंक्तियाँ और भी मार्मिक हो उठीं --"मेरो दर्द न जाने कोय । घायल की गति घायल जाने कि जिन लागि होय ।"

 

 

 


तुरीयानन्द लिखते हैं -- न जाने उनके हृदय में कैसी वेदना  थी कि मेरा हृदय भी द्रवित हो उठा और मैं आँसू बहाने लगा । मैंने सोचा कि मैं स्वामी जी से पीड़ा का कारण जानूँ ।  पर यह सोचकर रह गया कि उनके हृदय में आजकल सारे दीन दुखियों के लिए दर्द उमड़ता है ।

मित्रो ! स्वामी विवेकानंद के जीवन की कोमल संवेदना को प्रकट करने वाली एक-दो नहीं अनेक घटनाएँ हैं। उन घटनाओं के लिए अगले वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए।

 

 

 

29th March 2020

#कहानिया  #प्रसंग #डॉ.अशोकबत्रा #स्वामी विवेकानंद  #विवेकानंद #करुणावान   #हिंदी  #ashokbatra #vivekananda

 












Comments are closed