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विलक्षण बालक विवेकानंद

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विलक्षण बालक विवेकानंद


विलक्षण बालक विवेकानंद

 ॐ

मित्रो !  इस लेख में मैं आपके सामने स्वामी विवेकानंद के बचपन की विलक्षणता पर प्रकाश डालना चाहता हूँ | कहते हैं --  होनहार बिरवान के होत चिकने पात | विलक्षण बालकों के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगते हैं | जब विवेकानंद शिशु थे, उन्हें घर में बिले कहकर पुकारा जाता था | बहुत छुटपन में ही बालक बिले समाधि लगाने में रुचि लेने लगा था | माँ भुवनेश्वरी देवी धार्मिक और सात्त्विक महिला थीं | मोहल्ले भर की महिलाएँ रोज दोपहर को दत्त भवन में आकर कथा-कीर्तन किया करती थीं | रामायण और महाभारत की कथा पढ़ी जाती थी | अधिकतर भुवनेश्वरी देवी स्वयं कथा पढ़ा करती थीं | चंचल बालक बिले उस समय समाधिस्थ होकर बैठा रहा करता था |

कई बार तो ऐसा होता था कि महिलाएँ बड़ी मधुर धुन पर गीत गा रहीं हैं और बिले ने नाचना शुरू कर दिया है | ऐसा भावमुग्ध नृत्य –- कि गीत ख़त्म हो गया और बिले अभी भी नाचने में मस्त है | सब महिलाएँ मुग्ध भाव से उसे निहारे जा रही हैं और माँ भुवनेश्वरी देवी की किस्मत पर रीझ रही हैं | अचानक बिले को स्थिति का ज्ञान होता तो शरमा कर भाग जाता | भक्ति संगीत में ध्यान लगाने की विशेषता बिले में बचपन से ही झलकने लगी थी | भुवनेश्वरी देवी जब उसे गोदी में लेकर रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थीं, तो वह बड़े चाव से सुना करता था |

 

विलक्षण बालक विवेकानंद

विलक्षण बालक विवेकानंद

 

 

 

बिले बचपन से चंचल और शरारती भी बहुत था | उसे जिस भी काम में आनंद आ जाता, उसे करके ही छोड़ता था | धुन का पक्का | माँ की कीर्तन मण्डली में मज़ा आया, तो खेल-खेल में राम-सीता की युगल मूर्ति ले आया | और करने लगा युगल मूर्ति की आराधना ! और बच्चे भी आ गए | कम उम्र के बच्चे ही नहीं, कुछ उससे बड़ी उम्र के बच्चे भी भक्ति के खेल में शामिल हो गए |

अचानक एक दिन क्या हुआ ? वह अपने कोचवान के साथ सैर सपाटे पर निकला | उसे कोचवान के साथ बहुत लगाव था | अक्सर बातें करते करते वह अपनी जिज्ञासाएँ उसी से शांत किया करता था |

कोचवान बिले के मन में राम के प्रति भक्ति को देखकर बहुत प्रसन्न था | परन्तु शायद उसके अपने जीवन में शादी-ब्याह के अनुभव अधिक अच्छे नहीं थे | इसलिए उसने बिले के सामने पत्नी के बारे में ऐसे डरावने चित्र खींचे कि बिले के कोमल मन में शादी के प्रति वितृष्णा पैदा हो गई | मन पर ऐसा असर हुआ कि वह माँ के पास आकर रोने लगा | माँ ने रोने का कारण पूछा | बिले ने कोचवान ने साथ हुई सारी बातें बता दीं | और कहा – “ माँ ! मैं राम और सीता की मूर्ति की पूजा कैसे करूँ ? सीता भी तो राम जी की पत्नी थीं |” माँ ने बात सँभालते हुए कहा – “ तो क्या बात है बेटा ! तुम शिवजी की पूजा किया करो |” बालक को समाधान मिल गया | अब उसने शिवजी की मूर्ति की उपासना शुरू कर दी | बिले उत्साही तो था ही | साथियों के संग बाज़ार गया और शिवजी की मूर्ति खरीद लाया |

जब वह घर की ओर आ रहा था तो एक घटना घटी | उसका एक बाल-सखा समूह से छिटक कर अलग हो गया | वह बालक पगडण्डी से चलता-चलता सडक की ओर आ रहा था | अचानक बिले ने देखा कि एक बैलगाड़ी तेज गति से उस ओर आ रही है और उस बालक को लपेट में ले सकती है | बिले ने आव देखा न ताव | उसने हाथ की मूर्ति एक ओर फेंकी और अपने साथी को धकेल कर एक ओर कर दिया | इस प्रकार दुर्घटना होते-होते टल गई | इस घटना ने मानो बचपन में ही संकेत दे दिया था कि बिले के लिए मानव-जीवन का मूल्य भगवान् और पूजा से भी अधिक है |

एक बार की बात है ! घर में हनुमान की कथा हो रही थी | पंडित जी हनुमान जी की वीरता और शौर्य का बखान कर रहे थे| उन्होंने जब हनुमान जी द्वारा पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने की कथा सुनाई और समुद्र पार करके लंका जलाने की घटना सुनाई तो बिले रोमांचित हो उठा | पंडित जी बोले – हनुमान जी अजर हैं, अमर हैं | बिले ने आश्चर्य से पूछा – ‘पंडित जी, हनुमान जी आज भी जीवित हैं ? क्या हनुमान के दर्शन हो सकते हैं ?’ पंडित जी बोले – “बिले ! सच्चे मन से जो भी उनके दर्शन करना चाहे वह कर सकता है |”

बिले के मन में हनुमान के दर्शन की लालसा जग गई | कथा के बाद उसने पंडित जी से पूछा कि हनुमान जी कहाँ रहते हैं ? उनका पता बताओ | अब पंडित जी फँस गए | इतने छोटे बच्चे को क्या समझाएँ ! उन्होंने कहा – “बेटा ! तुम्हें पता है, हमुमान जी को केले बहुत पसंद हैं | इसीलिए वे केले के बगीचे में जरूर आते हैं |” बस फिर क्या था ! बिले अपने पास के बगीचे में जाकर बैठ गया | और करने लगा हनुमान जी की प्रतीक्षा | केले के वृक्ष लगे थे | पीले-पीले केलों के गुच्छे भी बहुत थे | सोचा – हनुमान जी जरूर केले खाने आएँगे | परन्तु दोपहर बीत गई | साँझ बीत गई | हनुमान जी नहीं आए | बालक बिले निराश होने लगा |

उधर घरवाले परेशान ! बिले को हर जगह ढूँढा | गलियाँ और बाज़ार छान मारे | पर बिले का कहीं पता नहीं | रात होने को थी | ढूँढ़ते-ढूँढ़ते माँ केले के बगीचे की ओर निकल आई | देखा, बिले उदास चेहरा लिए बगीचे में बैठा है | आँखें वृक्ष पर हैं | कहीं हनुमान जी आकर चुपचाप न निकल जाएँ | माँ को जैसे साँस में साँस आई | अधीर होकर बोली --  “बिले ! तू यहाँ क्या कर रहा है ? हम तुझे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते बदहाल हो गए हैं |”

बिले रुआँसा होकर बोला – “माँ ! हनुमान जी नहीं आए | पंडित जी ने तो कहा था , हनुमान जी केले के बगीचे में रहते हैं, कहाँ हैं ?”

“ओह बिले “ – माँ क्या कहे ?

उसने भावावेश में बिले को अपनी छाती से लगा लिया | बोलीं – “बेटे! हनुमान जी, जरूर राम जी के काम से कहीं गए होंगे | आ जाएँगे |”

पर बिले धुन का पक्का था | अगले दिन वह कोचवान के साथ कोलकाता की सड़कों पर टहलने लगा तो फिर बातों का सिलसिला चला दिया | पूछने लगा – “काका ! क्या आप हनुमान जी को जानते हैं ?”

कोचवान ने अपनी धौंस जमाते हुए कहा –“क्यों नहीं, मैं तो उनका परम भक्त हूँ |”

बिले बोला – “ तो काका बताओ ! क्या आपने उन्हें देखा है ?”

बोला – “ देखा है, बहुत बार देखा है | मैंने हर मंदिर में उनके दर्शन किए हैं |”

बिले बोला – “नहीं, मूर्ति वाले हनुमान जी नहीं | असली में उनके दर्शन किए हैं ?”

अब कोचवान फँस गया | क्या जवाब दे | कोई उत्तर नहीं सूझा |

 

 

 


बिले ने उसे फिर से झिंझोड़ा | कहा –“आप उत्तर क्यों नहीं देते | कैसे मिलेंगे हनुमान ?”

कोचवान बोला –“ बेटे ! इस बात का उत्तर बहुत कठिन है |”

बिले मचलकर बोला –“मैं कठिनाई से नहीं डरता | मैं किसी से नहीं डरता | मुझे बताओ, हनुमान जी के दर्शन कैसे हो सकते हैं ?”

कोचवान बोला –“ बेटे, इसके लिए घोर तपस्या करनी पड़ती है | पूरा जीवन अविवाहित रहना पड़ता है | ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है |”

बिले बोला –“मैं करूँगा तपस्या | मैं विवाह भी नहीं करूँगा | तब तो मुझे हनुमान जी दर्शन देंगे न !”

“हाँ बिले ! परन्तु ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत कठिन है |” --  कोचवान ने कहा |

घर आकर बिले ने अपनी माँ से कहा – “मैं ब्रह्मचारी बनूँगा | मैं विवाह नहीं करूँगा |”

माँ ने कहा – “बिले, तुझे किसने कहा है कि तू शादी कर | तू अभी बच्चा है | बच्चे विवाह थोड़ी करते हैं |”

बिले जिद पकड़ कर बोला – “नहीं माँ ! मैं कभी शादी नहीं करूँगा | मैं ब्रह्मचारी बनूँगा |”

माँ ने कहा – “अच्छा बेटा! तू शादी न करना | ब्रह्मचारी रहना | बस !” --  भरोसा दिलाया माँ ने | तब जाकर यह तूफ़ान शांत हुआ |

बिले अपने मित्रों में भी बहुत लोकप्रिय था | बचपन से ही उसके सब साथी उस पर मुग्ध रहा करते थे | वे सब उसकीं बातों का सम्मान किया करते थे | कभी-कभी वे नाटक खेला करते थे | उसमें राजा का भूमिका बिले किया करता था | शेष सभी साथी मंत्री, सेवक या सभासद बना करते थे |  राजा की भूमिका में बिले बहुत प्रभावशाली आदेश दिया करता था | आपने अनुभव किया होगा कि विवेकानंद ने जहाँ कहीं भी अपने विचार व्यक्त किए, उनकी वाणी का तेज किसी राजा-महाराजा से कम न था | ऐसे तेजपुंज थे विवेकानंद !!

 

 

28th March 2020

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