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विवेकानन्द शिकागो भाषण के बाद

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विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद


विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

 ॐ

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

प्रिय मित्रो ! आपने शिकागो की धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद जी के विश्वप्रसिद्ध भाषण और संबोधन की चर्चा तो खूब सुनी होगी,  किंतु उनके उस भाषण के बाद क्या हुआ, लोगों ने कैसे उनका स्वागत किया, निंदकों ने कैसे विरोध किया और स्वयं विवेकानंद पर क्या बीती --  इसका वर्णन मैं करने जा रहा हूँ ; क्योंकि बाद के अनुभव भी बहुत प्रेरक और मार्मिक हैं ।

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

 

लगभग 7000 श्रोताओं को बहरा कर देने वाली तालियाँ सुनने के बाद और उसके पश्चात 5 मिनट के संक्षिप्त और सारगर्भित भाषण के बाद श्रोता जैसे स्वामी विवेकानंद जी के दीवाने हो गए । लोगों के दिल अपने में समाते नहीं थे । उत्साह के मारे लोग उछल पड़ने को बेचैन थे । सभी प्रतिनिधि विवेकानंद से हाथ मिलाने,  उनका स्पर्श पाने , कोई उनकी चरण लेने और कोई उनके हस्ताक्षर लेने उनकी ओर उमड़ चला। विशेषकर स्त्रियों में होड़ लग गई। प्रतिनिधियों ने देखा -- स्त्रियाँ कुर्सियाँ फाँद कर उनकी ओर बढ़ी चली आ रही हैं । तभी श्रीमती एस. के.ब्लाज़ेट ने मन ही मन कहा था -- 'बेटा! यदि तुम इन दीवानी युवतियों के आक्रमण के सामने अपना मस्तक ठिकाने पर रख सके तो मैं समझूँगी कि तुम साक्षात भगवान हो ।' वे लिखती हैं कि सारी श्रोतामंडली निश्चय से बता नहीं पाई कि स्वामी जी के पहले शब्द सुनते ही वह क्यों हर्षध्वनि कर उठी थी ? यह कहना होगा कि स्वयं स्वामी जी तथा उनके शब्दों में छिपी किसी अव्यक्त वस्तु ने ही उन्हें इस प्रकार अनुप्राणित कर दिया था ।

 

 

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

 

 

विवेकानंद उस भाषण के बाद विजयी वीर की तरह अमेरिकी जनमानस पर छा गए ; बल्कि विश्व भर के प्रतिनिधियों ने उनका लोहा मान लिया । उस रात वे सबके हृदय के सम्राट बन गए । उन्हें शिकागो के धनकुबेर ल्योन महोदय के राजसी महल में ठहराया गया था । ल्योन महोदय की  दक्षिणी प्रांत में अनेक चीनी मिलें थीं । होना तो यह चाहिए था कि विवेकानंद उस रात विजय के गर्व में फूले न समाते । वे हर्ष के मारे इधर-उधर कूदते , जैसे कोई विश्वविजेता अखाड़े में बार-बार भुजाएँ फड़फड़ा कर चीखते-चिल्लाते हुए और पैर पटकते हुए अपने विश्वविजयी होने की घोषणा करता है ।  परंतु...परंतु स्वामी विवेकानंद की आँखों में नींद नहीं थी । वे नरम गद्दी पर भी सो न सके । अचानक एक निराशा ने, एक अवसाद ने, उनके हृदय को घेर लिया । उनके मन में अमरीका की समृद्धि और भारत की गरीबी का चौड़ा अंतर शोर मचाने लगा । वे इस निराशामयी खाई हो देखकर सिहर उठे । कैसे मिटेगी यह खाई ?

 

 

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

 

आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी । रोते-रोते तकिया भी गीला हो गया । वे बिस्तर से उठे ।  खिड़की के पास आकर सुदूर अंधकार में देखने लगे । छटपटाहट होने लगी । भावावेग में धरती पर लेट गए । और रोकर कहने लगे --" माँ !  मैं इस नाम और यश को लेकर क्या करूँ, जबकि मेरे देशवासी घोर निर्धनता में डूबे हुए हैं । मेरे भारत की जनता के मुँह में अन्न कौन देगा ? मैं उनकी सेवा में क्या कर सकता हूँ ?  माँ ! मेरा पथ प्रदर्शन करो ।"

 

 

रात को विवेकानंद इस तरह अपने देश की चिंता करते-करते कब सो गए, पता ही नहीं चला । परंतु अगली सुबह सारे अखबारों पर विवेकानंद छाए हुए थे । कट्टर से कट्टर ईसाई समाचार पत्र ने भी बेबाकी से लिखा कि यह सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व का आश्चर्यजनक वक्ता ही महासभा का सबसे प्रमुख आकर्षण रहा । हेराल्ड जैसे प्रमुख नामी समाचार पत्र ने लिखा --विवेकानंद निश्चित ही धर्म महासभा के महानतम व्यक्ति हैं । उनके व्याख्यान सुनने के बाद हमारी समझ में आ जाता है कि उस ज्ञानी राष्ट्र में धर्मप्रचारक भेजना कैसी मूर्खता है ?

 

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

 

इस मुँह बोलती प्रशंसा का परिणाम यह हुआ कि विवेकानंद देखते ही देखते धर्म महासभा के नायक बन गए । लोग उनकी झलक पाते ही तालियाँ बजाने लगते थे ।  वे मंच पर एक ओर से दूसरी ओर चले भी जाते तो लोग तालियों की गड़गड़ाहट से पूरे सभागार को गुंजा देते थे । उनकी लोकप्रियता का लाभ धर्म सभा ने भी खूब उठाया । वे विवेकानंद का प्रवचन सबसे अंत में रखते । इसी बहाने सारे श्रोता अंत तक बैठे रहते । जिस दिन विवेकानंद का भाषण पहले से घोषित होता था ,उस दिन सभागार खचाखच भर जाते थे ।

 


 

 

यह तो हुआ उनकी लोकप्रियता का लाभ, परंतु लोकप्रियता से उन्हें हानि क्या हुई, इसका इसका वर्णन अगले वीडियो में ।

 

 

 

 

 

14th April 2020

विवेकानंद शिकागो भाषण के बाद

प्रसंग डॉ. अशोक बत्रा की आवाज में

प्रसिद्ध कवि, लेखक, भाषाविद एवम् वक्ता

 

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